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Saathiya NCD Survivor...Sharing of hope
Saathiya NCDs & risk factors survivors for Good Health is an initiative of Nada India. It features and promotes ordinary people with extraordinary idea and commitment to promote Good Health and Well-being among people of all ages. Saathiya is platform to share hope and voice their concerns related to Good health in a market driven society.
Wednesday, December 4, 2024
Quit Yet! Ask me How... Tobacco Cessation Program
Thursday, November 9, 2023
Breaking Barriers: A Dialogue on Challenges in Social Work and Community Well-being
During a recent discussion at the XI Indian Social Work Congress 2023, Suneel Vatsyayan* had a thought-provoking conversation with Dr. Sudershan Passupuleti, PhD, a Professor at the School of Social Work, University of Texas Rio Grande Valley. This insightful dialogue took place within the corridor of the National Urdu University guest house Hyderabad.
Nada Acudetox Counselling India Network: Suneel Vatsyayan shared insights into the Nada Acudetox India Network, an initiative aimed at promoting barrier-free health delivery services among marginalised communities. This network emphasises community wellness for behavioural health, encompassing addiction,NCDs and its risk factors, mental health, and disaster and emotional trauma.
Professional Social Worker's Role in Calming the Inner Self: The dialogue delved into the question of whether professional social workers can teach clients to relax from the inside out. By inducing a sense of calm and quieting symptoms, interventions aim to stimulate one's inner energy, bringing individuals into a more balanced state conducive to communication.
Primary Prevention and Engaging Clients: The conversation extended to the primary and primordial prevention levels of intervention. Can social workers treat clients before completing assessments and diagnoses to ensure a cooperative and calm environment for effective diagnosis?
Challenging Assumptions: Several critical questions were raised, challenging traditional approaches.
- Can social workers help clients in denial about the need for treatment?
- Is it necessary to confront clients/patient about their drug use or the trauma they have experienced?
- Is it possible to make a client relax without them losing control?
Continuity of Treatment: A vital question emerged: can clients return at any time, especially following a relapse, and still experience the benefits of treatment? This highlights the importance of creating a supportive and flexible treatment environment.
Initiating a Global Dialogue: This blog post aims to initiate a broader dialogue on the challenges faced by society and the community in general. We invite social workers, professionals, health advocates and individuals to share their insights, experiences, and solutions. How can we collectively overcome these challenges and truly leave no one behind?
Let your thoughts and experiences flow in the comments below. Together, we can build a more inclusive and compassionate society. nadaindia@gmail.com Mobile 9810594544
Friday, April 21, 2023
हर गुजरी जिंदगी के साथ जिंदगी भी कहीं हार सी गई थी.. An open letter from Nada Young India Network member
हर गुजरी जिंदगी के साथ जिंदगी भी कहीं हार सी गई थी.....
लत से ईश्वर हर किसी को बचाए।
हरदिल अजीज़ दोस्त,
खत लिखकर तुमसे रूबरू हो रहा हूं। काफी दिनों से सोंच रहा था कि बिछड़ गए साथी से दिल की बात कहूं। उम्मीद है तुम दूसरी दुनिया में खुश होंगे। तुम्हारी जिंदगी का एक मामूली हिस्सा तुम्हे याद करता है। जिस अंदाज़ में दुनिया तुम छोड़ गए वो आज भी ताज़ा है। सिगरेट के कश लगाते हुए कब तुमने भी सोंचा होगा कि एक दिन मौत का कारण बनेगा। तम्बाकू की लत ने दरअसल तुम्हे यह दिन दिखाया। एक हंसता खेलता परिवार था तुम्हारा। जिसे तुम पीछे छोड़ गए। प्यारी बेटी थी। एक बेटा था। धर्मपत्नी थी। बूढ़े मां बाप थे। दोस्त करीबी रिश्तेदार थे। तुम्हें आज भी वो नहीं भूले। नहीं भूले वो लम्हा कि किस तरह अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे। किस तरह से फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था। मौत एक ऐसा हादसा होता है जिसकी याद कभी नहीं मरती।
सिगरेट आदि तम्बाकू प्रॉडक्ट्स के संपर्क में जब पहली बार आए थे। उस मोमेंट नहीं सोचा होगा कि लत लग जाएगी। मैं जख्मों को हरा नहीं करना चाहता। व्यक्तिगत क्षति मगर बड़ी होती है भाई। क्या नहीं बाक़ी कहने को और जिंदगी गुजर रही। मौसम के सख़्त इम्तिहान में जिंदगी का साथ सबको नसीब नहीं। मुश्किल वक्त ही दरअसल परीक्षा होती है। तम्बाकू सेवन के कारण हुई मौतों में तुम सिर्फ एक चेहरे हो। कितनी ही कहानियां आए दिन सामने आती हैं। रिपोर्ट का हिस्सा बनकर अखबार की कतरनों में खो जाती हैं। तकलीफ से गुजरना ना जानें क्यों एक शाश्वत हकीकत बन सी गयी है। तुम जिस दुनिया में चले गए वहां से कोई संदेश नहीं आता। शहर अब काफी बदल चुका है। बाज़ार लगा हुआ है। अपनी उपस्थिति बनाए हुए है।
कई मामलों में पीड़ित अपने पीछे कुछ भी नहीं छोड़ जाता। ना परिवार ना संपत्ति। ऐसे लोगों के अफसोस कोई न कोई करता होगा।
तम्बाकू को समय रहते काश यह लोग छोड़ देते। उसके संपर्क में ही नहीं आते तो और अच्छा होता। कुछ पल के नकली मजे के लिए स्वास्थ की परवाह ना करना खुद पर भारी पड़ता है।
आदत बड़ी चीज होती है। लग जाए तो फिर जल्दी छूटती नहीं।
लत से ईश्वर हर किसी को बचाए।
तुम्हारा.....
Thursday, March 16, 2023
गलतियाँ बहुत की मैंने|...ना जाने मैं आज कहाँ होता| मेरे इस सफर में ये डूबता हुआ सूरज हर वक़्त मेरे साथ था|
*वन्या गुप्ता एक उत्साही नवोदित लेखिका हैं, जिन्हें शब्दों का शौक है। वर्तमान में वह साहित्य में स्नातकोत्तर कर रही हैं| वह अपनी शैली के साथ प्रयोग करते हुए कई विषयों पर लघु कथाएँ और लेख लिखती हैं| पिछले लगभग 2 वर्षों से वह नाडा यंग इंडिया नेटवर्क से जुड़कर भारत से तंबाकू की समस्या दूर करने में प्रयासरत है|
गलतियाँ बहुत की मैंने| अगर उस दिन मेरे घर वाले मुझे नशा मुक्ति केंद्र तक नहीं ले जाते तो ना जाने मैं आज कहाँ होता| मेरे इस सफर में ये डूबता हुआ सूरज हर वक़्त मेरे साथ था| एक वक़्त में मैं भी इसके साथ डूब रहा था लेकिन आज मैं इसके साथ डूबता नहीं, बल्कि अगले दिन इसके साथ जागकर अपने जीवन में रोशनी भरता हूँ|
बचपन की बातें ज़हन में बहुत गहरी छाप छोड़ जाती है| मुझे कोई तकलीफ नहीं थी बचपन में, ऐसी कोई कहानी नहीं है| माँ और पापा दोनों का भरपूर प्यार मिला मुझे| मेरी माँ खाना बनाते हुए एक बहुत प्यारा सा गाना गया करती थी| मैं भी वहीं बैठ कर उनका गाना सुना करता था| स्कूल से आते वक़्त रास्ते से छोटे-छोटे पीले रंग के फूल तोड़ के लाता था| माँ हर बार वही फूल देख कर भी ऐसे खुश हुआ करती थी जैसे वो दुनिया के सबसे खूबसूरत फूल हों| जब पापा शाम को घर आते थे तो हम साथ बैठ कर चाँद को देखा करते थे और पापा मुझे बड़े-बड़े लोगों की कहानियाँ सुनाया करते थे| मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं महसूस हुई| पर एक गलत कदम ने मेरी सारी दुनिया इधर की उधर कर दी| आठवीं कक्षा की बात है| दोस्तों के साथ घूमना-फिरना मेरा हर रोज़ का काम था| एक दिन मेरे एक दोस्त ने मुझे पुराने पेड़ के पास वाली खली जगह आने को कहा| अपने दोस्त की चिंता मुझे वहाँ तक खींच ले गयी| वहाँ जाके मुझे जीवन का वो राज़ पता चला जो दिखता भले ही मामूली सा हो लेकिन चाहे तो किसी की हँसती-खेलती ज़िन्दगी को जला के राख कर सकता है| सिगरेट| मुझे पता था मुझे ये नहीं करना चाहिए| मुझे पता था ये मेरे लिए गलत है| लेकिन दोस्तों के साथ मुझे पता भी नहीं लगा मैंने कब पहली बार सिगरेट को हाथ में पकड़ा| पहली से दूसरी| दूसरी से दसवीं| न जाने कब ये मेरा रोज़ का हो गया| जिन शामों में मैं पहले छत पे बैठ कर सूरज को देखा करता था, वही शाम थी, वही सूरज था, पर मेरे साथ अब सिगरेट थी| मैं देखता रह गया और ये मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गयी, मेरा हर रोज़ का किस्सा बन गयी| जब खरीदने के लिए पैसे कम पड़ने लगे तो मुझे झूठ बोलना भी आ गया|
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है| ये बात मैंने सिर्फ घरवालों से झूठ बोलने में लागू की|
इन बातों को दो साल बीत गए| सिगरेट मेरी ज़िन्दगी का ऐसा हिस्सा बन गई थी की मेरे लिए ये बहुत आम बात हो गयी थी| कहानी यहाँ ख़तम नहीं होती| अभी मुझे और भी गलतियां करनी थी| दसवीं कक्षा में मैं और मेरा दोस्त एक शादी में जा पहुंँचे| जाकर देखा की सब बड़े आदमी एक तरफ इकठा होकर कुछ पी रहे थे| मैंने अनजाने में अपने दोस्त से कहा "चल हम भी जाकर देखते हैं ऐसे क्या है|" मेरा दोस्त हँस दिया और कहने लगा "यहाँ बड़े लोगों के बीच में नहीं| तू कल मुझे अपनी वाली जगह मिलियो| वहाँ पिलाऊँगा|" अगले दिन जब मैंने पहली बार वो पिया तो मुझे लगा कोई कैसे पीता होगा इसको| मेरे दोस्तों ने कहा "शुरू-शुरू में अजीब लगेगा तू पीकर तो देख अच्छे से|" इस तरह शुरू हुई मेरी और शराब की दास्ताँ| फिर ये भी मेरा रोज़ का हो गया| रोज़ मेरा पीकर घर आना| रोज़ मेरे पापा का गुस्सा करना| रोज़ मेरी माँ का हम दोनों के झगड़े के बीच में बोलना| अच्छा तो नहीं लगता था पर क्या करता? बुरी लत का मारा था|
दो साल और ऐसे ही निकल गए| उन्नीस का हो गया मैं| कॉलेज में आ गया| यहाँ आकर मेने फिर एक और गलत कदम उठाया| मुझे लगा था मैं तो सिगरेट और शराब दोनों का आदी हूँ बड़ी आसानी से दोस्त-यार बनेंगे और फिर सब साथ में पिएंगे| यहाँ कॉलेज में आकर देखा तो सब लोग कुछ और ही चीज़ के आदी थे| हेरोइन| चित्ता| ड्रग्स| दोस्तों से कहीं मैं पीछे ना रह जाऊं इस होड़ में मैंने चित्ते से भी दोस्ती करली| कमाल ये हुआ की अब मुझे डाँट पड़नी भी बंद हो गयी| मेरी गलती का गवाह बनने के लिए न तो सिगरेट का धुआँ होता था और न ही शराब की बदबू| मेरे घरवालों को लगा मैंने सब नशे छोड़ दिए| अब मैं बिना किसी डर के ड्रग्स में डूबने लगा| मेरी ज़िन्दगी और आसान हो गयी| लेकिन बस कुछ ही दिनों के लिए|
उसके बाद मेरे सामने एक नयी चुनौती आई| पैसे की| नशा करना मैंने सीख लिया और उस नशे के लिए पैसे चुकाने पड़ते हैं ये भी सिख लिया| बस वो पैसे कमाना नहीं सीखा था| कुछ दिन तो घर में झूठ बोलकर पैसे मांगता रहा| पर ऐसे भी कब तक चलता? अपनी लत के हाथों मजबूर होकर मैंने चोरी शुरू करदी| यहाँ पापा के बटुए से तो वहाँ माँ के चीनी के डब्बे से, कभी कम तो कभी ज़्यादा, पैसे चोरी करने लगा| जब ये भी काम पड़ने लगे तो पडो़सी के घर से, आते जाते किसी इंसान से, जहाँ मौका मिले वहीं से| मैं पूरी तरह से इन चार चीज़ों के काबू में था- सिगरेट, शराब, हेरोइन और चोरी| हाथ की सफाई मेरे लिए बच्चों का खेल बन गयी थी|
इसी सिरे में एक दिन मैंने अपने चाचा की जेब में हाथ डाला| पकड़ा गया| मेरे माँ बाप के सामने लाके मुझे खड़ा कर दिया गया| मेरी हर लत, हर चोरी का खुलासा किया गया| मेरी माँ के आंसू| पापा का गुस्सा| परिवार के ताने| ज़िन्दगी ने कभी इससे ज़्यादा ज़लील नहीं किया था| उस दिन मुझे समझ आ गया था की मुझे क्या करना है|
मेरे घरवालों ने मुझे नशा मुक्ति केंद्र भेज दिया| 6 महीने रहा मैं वहाँ| ज़िन्दगी के छोटे-छोटे टुकड़ों को समेटना सीखा मैंने| जिस गलत राह पे मैं चल पड़ा था वो छोड़ कर पहली बार सही रास्ता देखा मैंने| वहाँ के लोगों को जाना-पहचाना तो पता चला किस्मत क्या-क्या खेल पलट देती है| मुझे तो भगवान ने सब कुछ दिया था और मैं उसे अपने ही हाथों से बर्बाद कर रहा था| अब मुझे ये गलती दोबारा नहीं करनी थी| मन में ख्याल आया की कहीं फिर तूने दोस्तों के चक्कर में ये गलतियाँ दोहरा ली तो? मेरी खोई हुई पहचान जो मुझे इतनी मुश्किल से वापिस मिली थी, उसे में दोबारा नहीं खो सकता था| इसीलिए मैंने कर्मा वेलफेयर सोसाइटी की ओर खुद को मोड़ दिया| वहाँ मेरे जैसे दूसरे परेशान लोग आया करते थ| इस नशे के दलदल से बाहर निकलने में मैं उनकी सहायता करने लगा| बहुत दिन मन लगा कर मेने उनकी सेवा की| जब भी कोई ठीक होकर वहाँ से जाता था, अपने आप को सँवारता था, तो मुझे लगता था की मैंने अपनी एक-एक गलती का प्रायश्चित्त कर लिया हो| उन सभी को आगे बढ़ता देख मैंने भी अपने आपको एक दूसरा मौका देने की कोशिश की| आज मैं एक ड्राइवर हूँ| मेरी अपनी एक छोटी सी ज़िन्दगी है| छोटी-छोटी खुशियाँ है| पर बड़ी गलतियों से अब मैं दूर रहता हूँ| जब वक़्त मिलता है तो वापिस दुसरों की सेवा करने कर्मा वेलफेयर सोसाइटी पहुँच जाता हूँ|
गलतियाँ बहुत की मैंने| अगर उस दिन मेरे घर वाले मुझे नशा मुक्ति केंद्र तक नहीं ले जाते तो ना जाने मैं आज कहाँ होता| मेरे इस सफर में ये डूबता हुआ सूरज हर वक़्त मेरे साथ था| एक वक़्त में मैं भी इसके साथ डूब रहा था लेकिन आज मैं इसके साथ डूबता नहीं, बल्कि अगले दिन इसके साथ जागकर अपने जीवन में रोशनी भरता हूँ|
Wednesday, January 25, 2023
Saturday, June 25, 2022
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