*वन्या गुप्ता एक उत्साही नवोदित लेखिका हैं, जिन्हें शब्दों का शौक है। वर्तमान में वह साहित्य में स्नातकोत्तर कर रही हैं| वह अपनी शैली के साथ प्रयोग करते हुए कई विषयों पर लघु कथाएँ और लेख लिखती हैं| पिछले लगभग 2 वर्षों से वह नाडा यंग इंडिया नेटवर्क से जुड़कर भारत से तंबाकू की समस्या दूर करने में प्रयासरत है|
गलतियाँ बहुत की मैंने| अगर उस दिन मेरे घर वाले मुझे नशा मुक्ति केंद्र तक नहीं ले जाते तो ना जाने मैं आज कहाँ होता| मेरे इस सफर में ये डूबता हुआ सूरज हर वक़्त मेरे साथ था| एक वक़्त में मैं भी इसके साथ डूब रहा था लेकिन आज मैं इसके साथ डूबता नहीं, बल्कि अगले दिन इसके साथ जागकर अपने जीवन में रोशनी भरता हूँ|
बचपन की बातें ज़हन में बहुत गहरी छाप छोड़ जाती है| मुझे कोई तकलीफ नहीं थी बचपन में, ऐसी कोई कहानी नहीं है| माँ और पापा दोनों का भरपूर प्यार मिला मुझे| मेरी माँ खाना बनाते हुए एक बहुत प्यारा सा गाना गया करती थी| मैं भी वहीं बैठ कर उनका गाना सुना करता था| स्कूल से आते वक़्त रास्ते से छोटे-छोटे पीले रंग के फूल तोड़ के लाता था| माँ हर बार वही फूल देख कर भी ऐसे खुश हुआ करती थी जैसे वो दुनिया के सबसे खूबसूरत फूल हों| जब पापा शाम को घर आते थे तो हम साथ बैठ कर चाँद को देखा करते थे और पापा मुझे बड़े-बड़े लोगों की कहानियाँ सुनाया करते थे| मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं महसूस हुई| पर एक गलत कदम ने मेरी सारी दुनिया इधर की उधर कर दी| आठवीं कक्षा की बात है| दोस्तों के साथ घूमना-फिरना मेरा हर रोज़ का काम था| एक दिन मेरे एक दोस्त ने मुझे पुराने पेड़ के पास वाली खली जगह आने को कहा| अपने दोस्त की चिंता मुझे वहाँ तक खींच ले गयी| वहाँ जाके मुझे जीवन का वो राज़ पता चला जो दिखता भले ही मामूली सा हो लेकिन चाहे तो किसी की हँसती-खेलती ज़िन्दगी को जला के राख कर सकता है| सिगरेट| मुझे पता था मुझे ये नहीं करना चाहिए| मुझे पता था ये मेरे लिए गलत है| लेकिन दोस्तों के साथ मुझे पता भी नहीं लगा मैंने कब पहली बार सिगरेट को हाथ में पकड़ा| पहली से दूसरी| दूसरी से दसवीं| न जाने कब ये मेरा रोज़ का हो गया| जिन शामों में मैं पहले छत पे बैठ कर सूरज को देखा करता था, वही शाम थी, वही सूरज था, पर मेरे साथ अब सिगरेट थी| मैं देखता रह गया और ये मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गयी, मेरा हर रोज़ का किस्सा बन गयी| जब खरीदने के लिए पैसे कम पड़ने लगे तो मुझे झूठ बोलना भी आ गया|
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है| ये बात मैंने सिर्फ घरवालों से झूठ बोलने में लागू की|
इन बातों को दो साल बीत गए| सिगरेट मेरी ज़िन्दगी का ऐसा हिस्सा बन गई थी की मेरे लिए ये बहुत आम बात हो गयी थी| कहानी यहाँ ख़तम नहीं होती| अभी मुझे और भी गलतियां करनी थी| दसवीं कक्षा में मैं और मेरा दोस्त एक शादी में जा पहुंँचे| जाकर देखा की सब बड़े आदमी एक तरफ इकठा होकर कुछ पी रहे थे| मैंने अनजाने में अपने दोस्त से कहा "चल हम भी जाकर देखते हैं ऐसे क्या है|" मेरा दोस्त हँस दिया और कहने लगा "यहाँ बड़े लोगों के बीच में नहीं| तू कल मुझे अपनी वाली जगह मिलियो| वहाँ पिलाऊँगा|" अगले दिन जब मैंने पहली बार वो पिया तो मुझे लगा कोई कैसे पीता होगा इसको| मेरे दोस्तों ने कहा "शुरू-शुरू में अजीब लगेगा तू पीकर तो देख अच्छे से|" इस तरह शुरू हुई मेरी और शराब की दास्ताँ| फिर ये भी मेरा रोज़ का हो गया| रोज़ मेरा पीकर घर आना| रोज़ मेरे पापा का गुस्सा करना| रोज़ मेरी माँ का हम दोनों के झगड़े के बीच में बोलना| अच्छा तो नहीं लगता था पर क्या करता? बुरी लत का मारा था|
दो साल और ऐसे ही निकल गए| उन्नीस का हो गया मैं| कॉलेज में आ गया| यहाँ आकर मेने फिर एक और गलत कदम उठाया| मुझे लगा था मैं तो सिगरेट और शराब दोनों का आदी हूँ बड़ी आसानी से दोस्त-यार बनेंगे और फिर सब साथ में पिएंगे| यहाँ कॉलेज में आकर देखा तो सब लोग कुछ और ही चीज़ के आदी थे| हेरोइन| चित्ता| ड्रग्स| दोस्तों से कहीं मैं पीछे ना रह जाऊं इस होड़ में मैंने चित्ते से भी दोस्ती करली| कमाल ये हुआ की अब मुझे डाँट पड़नी भी बंद हो गयी| मेरी गलती का गवाह बनने के लिए न तो सिगरेट का धुआँ होता था और न ही शराब की बदबू| मेरे घरवालों को लगा मैंने सब नशे छोड़ दिए| अब मैं बिना किसी डर के ड्रग्स में डूबने लगा| मेरी ज़िन्दगी और आसान हो गयी| लेकिन बस कुछ ही दिनों के लिए|
उसके बाद मेरे सामने एक नयी चुनौती आई| पैसे की| नशा करना मैंने सीख लिया और उस नशे के लिए पैसे चुकाने पड़ते हैं ये भी सिख लिया| बस वो पैसे कमाना नहीं सीखा था| कुछ दिन तो घर में झूठ बोलकर पैसे मांगता रहा| पर ऐसे भी कब तक चलता? अपनी लत के हाथों मजबूर होकर मैंने चोरी शुरू करदी| यहाँ पापा के बटुए से तो वहाँ माँ के चीनी के डब्बे से, कभी कम तो कभी ज़्यादा, पैसे चोरी करने लगा| जब ये भी काम पड़ने लगे तो पडो़सी के घर से, आते जाते किसी इंसान से, जहाँ मौका मिले वहीं से| मैं पूरी तरह से इन चार चीज़ों के काबू में था- सिगरेट, शराब, हेरोइन और चोरी| हाथ की सफाई मेरे लिए बच्चों का खेल बन गयी थी|
इसी सिरे में एक दिन मैंने अपने चाचा की जेब में हाथ डाला| पकड़ा गया| मेरे माँ बाप के सामने लाके मुझे खड़ा कर दिया गया| मेरी हर लत, हर चोरी का खुलासा किया गया| मेरी माँ के आंसू| पापा का गुस्सा| परिवार के ताने| ज़िन्दगी ने कभी इससे ज़्यादा ज़लील नहीं किया था| उस दिन मुझे समझ आ गया था की मुझे क्या करना है|
मेरे घरवालों ने मुझे नशा मुक्ति केंद्र भेज दिया| 6 महीने रहा मैं वहाँ| ज़िन्दगी के छोटे-छोटे टुकड़ों को समेटना सीखा मैंने| जिस गलत राह पे मैं चल पड़ा था वो छोड़ कर पहली बार सही रास्ता देखा मैंने| वहाँ के लोगों को जाना-पहचाना तो पता चला किस्मत क्या-क्या खेल पलट देती है| मुझे तो भगवान ने सब कुछ दिया था और मैं उसे अपने ही हाथों से बर्बाद कर रहा था| अब मुझे ये गलती दोबारा नहीं करनी थी| मन में ख्याल आया की कहीं फिर तूने दोस्तों के चक्कर में ये गलतियाँ दोहरा ली तो? मेरी खोई हुई पहचान जो मुझे इतनी मुश्किल से वापिस मिली थी, उसे में दोबारा नहीं खो सकता था| इसीलिए मैंने कर्मा वेलफेयर सोसाइटी की ओर खुद को मोड़ दिया| वहाँ मेरे जैसे दूसरे परेशान लोग आया करते थ| इस नशे के दलदल से बाहर निकलने में मैं उनकी सहायता करने लगा| बहुत दिन मन लगा कर मेने उनकी सेवा की| जब भी कोई ठीक होकर वहाँ से जाता था, अपने आप को सँवारता था, तो मुझे लगता था की मैंने अपनी एक-एक गलती का प्रायश्चित्त कर लिया हो| उन सभी को आगे बढ़ता देख मैंने भी अपने आपको एक दूसरा मौका देने की कोशिश की| आज मैं एक ड्राइवर हूँ| मेरी अपनी एक छोटी सी ज़िन्दगी है| छोटी-छोटी खुशियाँ है| पर बड़ी गलतियों से अब मैं दूर रहता हूँ| जब वक़्त मिलता है तो वापिस दुसरों की सेवा करने कर्मा वेलफेयर सोसाइटी पहुँच जाता हूँ|
गलतियाँ बहुत की मैंने| अगर उस दिन मेरे घर वाले मुझे नशा मुक्ति केंद्र तक नहीं ले जाते तो ना जाने मैं आज कहाँ होता| मेरे इस सफर में ये डूबता हुआ सूरज हर वक़्त मेरे साथ था| एक वक़्त में मैं भी इसके साथ डूब रहा था लेकिन आज मैं इसके साथ डूबता नहीं, बल्कि अगले दिन इसके साथ जागकर अपने जीवन में रोशनी भरता हूँ|